पत्रकारिता दिवस पर चंदौली में ‘पत्रकार प्रेस क्लब’ का गठन, मीडिया की चुनौतियों और भविष्य पर मंथन, पत्रकारों ने सीखा 'लेखन का ककहरा'

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चंदौली में हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर एक ऐतिहासिक पहल करते हुए 'पत्रकार प्रेस क्लब' की नींव रखी गई। कार्यक्रम की शुरुआत माँ सरस्वती एवं हिंदी पत्रकारिता के जनक माने जाने वाले उदंत मार्तण्ड के प्रथम संपादक पं. युगल किशोर शुक्ल के तैलचित्र पर दीप प्रज्वलन के साथ हुई।

 

गोष्ठी में विभिन्न मीडिया संस्थानों से आए संपादकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने अपनी बात रखते हुए वर्तमान मीडिया की दिशा-दशा पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया और वक्ताओं ने अपने अनुभवों एवं विचारों से पत्रकारों को नई दिशा देने की कोशिश की।

 

पत्रकार की हत्या और असंवेदनशीलता पर जताया आक्रोश

 

गोष्ठी के दौरान पत्रकारों की सुरक्षा और उनके प्रति समाज व शासन की संवेदनहीनता को लेकर आक्रोश भी फूटा। खासकर सीतापुर और चंदौली में पत्रकारों की हत्या की घटनाओं ने माहौल को भावुक कर दिया।

 

 

टीवी-20 के पत्रकार की चंदौली में हत्या के मामले को लेकर चर्चा में यह बात सामने आई कि जिस पत्रकार के छोटे-छोटे बच्चे अब अनाथ हो गए, उसके ‘पत्रकार’ होने पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं। एक संगठन ने जांच बैठा दी कि वह वास्तव में पत्रकार था या नहीं। यह पीड़ित परिवार के साथ क्रूर मजाक जैसा है। मदद के नाम पर राजनीति और पत्रकारिता की पहचान पर सवाल, व्यवस्था की असंवेदनशीलता को दर्शाते हैं।

 

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सच की दस्तक के संपादक ब्रजेश कुमार ने कहा कि पत्रकारिता अपने आप में आज एक बड़ी चुनौती बन गई है। उन्होंने अफसोस जताया कि तमाम पत्रकार यूनियन होते हुए भी हम एकजुट नहीं हैं। आज पत्रकारिता के नाम पर कई ऐसे लोग आ गए हैं जो न तो पत्रकारिता की मर्यादा समझते हैं, न ही वरिष्ठता का सम्मान करते हैं।

 

 

उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में "कॉपी-पेस्ट" की प्रवृत्ति और बिना प्रशिक्षण के लोगों का प्रवेश, इस पेशे की गरिमा को नुकसान पहुँचा रहा है। प्रेस क्लब: संगठनात्मक एकजुटता की पहल ‘चंदौली प्रेस क्लब’ के गठन को पत्रकारों ने एक सकारात्मक कदम बताया। यह क्लब भविष्य में पत्रकारों के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करेगा, जिससे उन्हें आधुनिक पत्रकारिता की तकनीकों और नैतिक जिम्मेदारियों के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। क्लब का उद्देश्य पत्रकारिता को एक सही दिशा देना और पत्रकारों को संगठित करना है।

 

ज्ञान शिखा टाइम्स के ब्यूरो प्रमुख सत्यनारायण ने कहा कि आज पत्रकारिता का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस दौर में गली-चौराहे पर भी लोग खुद को पत्रकार घोषित कर देते हैं, पर उनमें पत्रकारिता की समझ और नैतिकता का अभाव होता है। उन्होंने कहा कि अब पत्रकारों को लेखनी में वह धार लानी होगी जिससे उनकी पहचान अलग हो। पत्रकारिता एक जुनून है और इसमें केवल वही टिक सकता है जिसमें समाज को बदलने की आकांक्षा हो।

 

हिंदी पत्रकारिता की विरासत और बदलाव पूर्वांचल टाइम्स के संपादक अमित द्विवेदी ने अपने वक्तव्य में हिंदी पत्रकारिता के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1826 में निकला पहला हिंदी समाचार पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ हमारे लिए प्रेरणा है। 30 मई को उसी के प्रकाशन की स्मृति में हम हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाते हैं। आज पत्रकारिता प्रिंट से डिजिटल युग में प्रवेश कर चुकी है। ऐसे में अब जरूरत है कि एक ऐसा मंच बने जिसमें प्रिंट और डिजिटल, दोनों माध्यमों से जुड़े लोग साथ आ सकें। उन्होंने कहा कि बैनर से ज़्यादा ज़रूरी है ईमानदारी से किया गया काम।

 

 

अमर उजाला के प्रतिनिधि कृष्ण मुरारी मिश्रा ने पत्रकारिता को संविधान के चौथे स्तंभ के रूप में बताते हुए कहा कि इस पेशे की गरिमा बनाए रखने के लिए सबसे पहले हमें खुद को सुधारना होगा। उन्होंने चंदौली प्रेस क्लब को इस दिशा में अहम भूमिका निभाने वाला संगठन बताया।

 

खबरी न्यूज के संपादक के. सी. श्रीवास्तव ने पत्रकारिता को आम जनता की आवाज बताया और कहा कि जब व्यवस्था चुप हो जाए तो पत्रकार ही बोलता है। उन्होंने निष्पक्षता की शपथ लेने का आग्रह किया और कहा कि यही पत्रकारिता का मूल है।

 

इतिहास और सिद्धांतों की गूंज

 

नागरी प्रचारिणी सभा काशी, नई दिल्ली और हरिद्वार के प्रधानमंत्री एवं मुख्य वक्ता व्योमेश शुक्ल ने पत्रकारिता के इतिहास पर 30 मिनट तक गहराई से चर्चा की। उन्होंने भारतेंदु हरिश्चंद्र के योगदानों का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंदी पत्रकारिता हिंदी भाषा के विकास का आधार है। उन्होंने कहा कि जब अंग्रेजों के खिलाफ तलवारें नहीं चलीं, तब भारतेंदु जी ने अखबारों को हथियार बनाया। यह पत्रकारिता का सबसे क्रांतिकारी स्वरूप था।

 

 

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. विनय वर्मा ने कहा कि पत्रकारिता सत्ता की नहीं, जनता की आवाज है। उन्होंने पत्रकारिता की सूक्ष्मता और इसके सामाजिक महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पत्रकार का कर्तव्य न तो सत्ता से डरना है और न विपक्ष से। बल्कि वह आम जन की आवाज को शासन तक पहुँचाने का माध्यम है।

 

बीएचयू के हिंदी विभाग के प्रो. मनोज सिंह ने सत्य की बहुआयामी प्रकृति को रेखांकित करते हुए कहा कि सत्य कभी एकतरफा नहीं होता। उन्होंने महाभारत और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उदाहरणों से यह समझाया कि पत्रकारिता में सत्य की व्याख्या समय और संदर्भ के अनुसार बदलती है।

 

AI पत्रकारिता समय की मांग: विजय विनीत

 

त्रकारिता से बदलाव की संभावनाएं वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, एक जिम्मेदारी है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने 2001 में नौगढ़ में तीन लोगों की भूख से मौत की खबर कवर कर संसद तक पहुँचाई थी। उन्होंने चंदौली के गांवों में पानी, सड़क और खाद्यान्न जैसी समस्याओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि पत्रकारिता तभी सार्थक है जब वह जिंदगियों को बदल दे।

 

उन्होंने बताया कि एक रिपोर्ट के बाद देश की एक बड़ी कॉर्पोरेट कंपनी ने चंदौली के एक गांव को गोद लेने का निर्णय लिया है। यह पत्रकारिता की शक्ति का उदाहरण है। विजय विनीत ने यह भी कहा कि आने वाला समय रियल टाइम पत्रकारिता और एआई आधारित तकनीकों का है। अमेरिका में एक मिनट में 100 खबरें प्रकाशित हो जाती हैं।

 

हिंदुस्तान टाइम्स ने ‘AI न्यूज़ रूम’ बना लिया है जहां पत्रकारों की आवश्यकता नहीं है। अगर हम तकनीक नहीं सीखेंगे तो पत्रकारिता में बने रहेंगे पर चेहरे बदल जाएंगे। पत्रकारिता दिवस के इस अवसर पर हुए आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि पत्रकारिता एक संघर्ष है, जो लगातार बदलती तकनीकों, सामाजिक चुनौतियों और राजनीतिक हस्तक्षेपों के बीच अपने अस्तित्व और उद्देश्य को बचाए रखने की कोशिश कर रही है।

 

चंदौली प्रेस क्लब जैसे संगठनों की स्थापना इस दिशा में एक सकारात्मक पहल है। यह क्लब भविष्य में पत्रकारों को संगठित करने, प्रशिक्षित करने और एक नैतिक पत्रकारिता की पुनर्स्थापना के लिए मंच प्रदान करेगा। इस अवसर पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मनोज सिंह, व्योमेश शुक्ल, डॉ. विनय वर्मा, विजय विनीत जैसे विद्वानों की उपस्थिति ने कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ाया।

 

कार्यक्रम का संचालन कृष्णमोहन ने किया और अध्यक्षता डॉ. अनिल यादव ने की। सैकड़ों पत्रकारों की उपस्थिति ने यह संकेत दिया कि अब समय है संगठित होने का, संवाद करने का और पत्रकारिता को फिर से जनसरोकारों से जोड़ने का।

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