- Gyanvapi पर HC की टिप्पणी- वर्ष में एक बार पूजन करने पर नहीं गिरती मस्जिद की गरिमा, तो रोज करने पर रोना क्यों?
Gyanvapi: इलाहाबाद हाईकोर्ट (HC) ने ज्ञानवापी (Gyanvapi) की श्रृंगार गौरी मंदिर की नियमित पूजा अधिकार के मामले में अपने फैसले में अहम कमेंट किए। हाईकोर्ट (HC) ने बुधवार को दिए अपने फैसले में कहा, ‘जब वर्तमान में साल में एक बार पूजा की अनुमति है। एक बार पूजा से मस्जिद के चरित्र को कोई खतरा नहीं होता। तो रोजाना या साप्ताहिक पूजा से से मस्जिद के चरित्र में कैसे बदलाव हो सकता है।’
हाईकोर्ट (HC) ने कहा, ‘वर्ष 1990 तक रोजाना मां श्रृंगार गौरी, हनुमान और गणेश भगवान की पूजा होती थी। इसके बाद से साल में एक बार पूजा की अनुमति है। तो, सरकार या स्थानीय प्रशासन रेगुलेशन से नियमित पूजा की व्यवस्था कर सकती है। इसका कानून से कोई संबंध नहीं है। यह प्रशासन और सरकार के स्तर तक का मामला है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट (HC) में जस्टिस गिरी मुनि की सिंगल बेंच ने ज्ञानवापी (Gyanvapi) श्रृंगार गौरी केस में अपना फैसला सुनाते हुए जिला कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। इसके साथ ही कोर्ट ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट में बहस पूरी होने के बाद 23 दिसंबर 2022 का फैसला सुरक्षित रख लिया था।
गौरतलब है कि श्रृंगार गौरी समेत अन्य देवी देवताओं की नियमित पूजा की मांग को लेकर 5 महिला वादिनियों ने जिला कोर्ट में मुकदमा किया था। जिसपर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने जिला कोर्ट में आपत्ति जताई थी। मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में वर्ष 1991 के वर्शिप एक्ट (Worship Act) का प्रावधान बताया था। मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट को बताया कि इस एक्ट के अनुसार, कोर्ट को इस मामले पर सुनवाई करने का अधिकार नहीं है।
वाराणसी जिला कोर्ट ने 12 सितम्बर 2022 को 26 पन्ने का आदेश देते हुए मसाजिद कमेटी के आदेश को ख़ारिज कर दिया था। कोर्ट ने इस मामले में कहा था कि इस केस में वर्शिप एक्ट (Worship Act) लागू नहीं होता। जिसके बाद कमेटी ने जिला जज के इस फैसले को हाईकोर्ट (HC) में चुनौती दी थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट (HC) ने कहा था, ‘मुस्लिम पक्ष श्रृंगार गौरी मंदिर वाली जमीन को वक्फ बोर्ड की जमीन बता रही है। हिंदू पक्षकारों के ओर से वक्फ संपत्ति को कब्जे में सौंपने या स्वामित्व में लेने की बात अपने सिविल वाद में नहीं की जा रही है। ऐसे में यह मामला केवल श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार से जुड़ा हुआ है। इस केस में वक्फ एक्ट 1995 की धारा 85 लागू नहीं होती है और न ही इस मामले में वर्शिप एक्ट (Worship Act) 1991 ही लगाया जा सकता है।”
ज्ञानवापी (Gyanvapi) पर नहीं लागू होता उपासना स्थल कानून (Worship Act)
हाईकोर्ट (HC) ने अपने आदेश में यह भी कहा कि 1993 में हिंदू समुदाय द्वारा श्रृंगार गौरी की पूजा रोकने के बाद कई सालों तक पूजा के लिए कानूनी कदम नहीं उठाया। फिर 2021 में हिंदू पक्षकारों को पूजा करने से रोक दिया गया। इससे इनके प्रतिदिन पूजा के अधिकार की मांग समाप्त नहीं होती है। इस पर लिमिटेशंस कानून यानी उपासना स्थल कानून (Worship Act) 1991 लागू नहीं होता है।
हाईकोर्ट (HC) ने कहा- हिन्दू पक्ष, विवादित संपत्ति पर अपने देवी-देवताओं मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश और भगवान हनुमान की पूजा करने के अधिकार की मांग कर रहा है। इसलिए सिविल कोर्ट के पास इस मामले का फैसला करने का अधिकार है। हाईकोर्ट (HC) ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की दलील है कि 15 अगस्त 1947 से 1993 तक यहां नियमित पूजा होती थी। 1993 में विवाद बढ़ने पर उत्तर प्रदेश राज्य के नियामक के तहत साल में एक बार पूजा करने की अनुमति दी गई थी। इसलिए पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत पूजा पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।
इस मामले में मुस्लिम पक्ष की दलील भी सामने आई है। मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी का तर्क था कि उपासना स्थल अधिनियम वर्शिप एक्ट (Worship Act) से नियमित पूजा नहीं हो सकती। यह पूरी तरह से बैंड है। यहां नियमित पूजा नहीं की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। रोज यहां पूजा होने से धार्मिक प्रकृति से छेड़छाड़ होगी, जो कानूनन नहीं की जा सकती है।
हाईकोर्ट (HC) के फैसले के बाद हिन्दू पक्ष के वकिल विष्णु शंकर जैन ने कहा, ‘यह बहुत ही ऐतिहासिक फैसला है। क्योंकि मुस्लिम पक्ष हमेशा दावा करता रहता था कि यह केस प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (Worship Act) फैक्ट से बाधित है। वाराणसी की सिविल कोर्ट ने 12 सितंबर को हमारे पक्ष में फैसला दिया था। वही बात आज इलाहाबाद हाईकोर्ट (HC) में भी जस्टिस जेजे मुनीर ने कही है। जिसमें उन्होंने होल्ड किया कि रिवीजन पिटीशन मेंटेनेबल नहीं है और अंजुमन इंतजामिया की पिटीशन डिसमिस कर दी।
वैसे इस मामले में हिन्दू पक्ष के ओर से एक याचिका पिछले वर्ष ही दायर की गई थी। जिसे हिन्दू पक्ष ने SC में ज्ञानवापी (Gyanvapi) के वीडियोग्राफी सर्वे के बाद जवाबी याचिका में दावा किया था। जवाबी याचिका में कहा गया था कि मुगल आक्रांता औरंगजेब को हिन्दू मंदिर विध्वंस करने में महारत हासिल थी।
उसके आदेश पर काशी और मथुरा सहित देश के कई हिन्दू मंदिरों का विध्वंस किया गया। काशी के आदि विश्वेश्वर मंदिर को ध्वस्त करने के साथ ही उसी क्षेत्र में ज्ञानवापी (Gyanvapi) मस्जिद का निर्माण भी किया गया, लेकिन वे हिंदू धार्मिक प्रतीकों और देवताओं की मूर्तियों को बदलने में विफल रहे। इसलिए देवी श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश और अन्य देवता आज भी परिसर में मौजूद हैं।
याचिका में कहा गया था कि औरंगजेब ने अपने फरमान में और मुगल इतिहासकारों के रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि औरंगजेब या उसके बाद के शासकों ने विवादित भूमि पर वक्फ बनाने या किसी मुस्लिम या मुस्लिम निकाय को जमीन सौंपने का आदेश दिया था। हिंदू पक्ष की ओर कोर्ट में शामिल अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने याचिका में अदालत को बताया कि फरमान की कॉपी कोलकाता के एशियाटिक लाइब्रेरी रखे होनी की जानकारी मिली है।
औरंगजेब मंदिर विध्वंसकारी
याचिका में कहा गया था कि इतिहासकार इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस्लामी शासक औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें उसके प्रशासन को वाराणसी में स्थित भगवान आदि विश्वेश्वर के मंदिर को ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया था। आदि विश्वेश्वर के मंदिर पर 1193 ईस्वी से 1669 ईस्वी तक हमला किया गया, लूटा गया और ध्वस्त किया गया।
हिंदू पक्ष ने कहा कि मस्जिद सिर्फ वक्फ की भूमि पर बनाई जा सकती है। इस मामले में मंदिर की भूमि और संपत्ति अनादि काल से देवता की है। तर्क दिया गया कि किसी मुस्लिम शासक या किसी मुस्लिम के आदेश के तहत मंदिर की भूमि पर किए गए निर्माण को मस्जिद नहीं माना जा सकता है।
याचिका में कहा गया था कि काशी में आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग ‘स्वयंभू देवता’ हैं और यह ‘तपोभूमि’ भारतवर्ष के विभिन्न हिस्सों में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्राचीन है। हिंदू पौराणिक कथाओं के तहत ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है और इसका वर्णन वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अन्य शास्त्रों में किया गया है।
याचिका में यह भी कहा गया था कि ज्ञानवापी (Gyanvapi) विवादित ढाँचे पर पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 लागू नहीं होता, क्योंकि वहाँ की संरचना के धार्मिक चरित्र को बदलने को लेकर कोई सवाल ही नहीं है। वहाँ अभी भी भगवान की पूजा होती है और श्रद्धालुओं द्वारा पंचकोशी परिक्रमा किया जाता है। याचिका में कहा गया था कि हिंदू कानून भी कहता है कि देवता की भूमि हमेशा देवता के नाम पर रहती है। विदेशी शासन आने के बाद भी देवता का अधिकार खत्म
याचिका में कहा गया था कि मुस्लिम पक्ष भी इस बात को मानते हैं कि 30 दिसंबर 1810 को तत्कालीन जिलाधिकारी वॉटसन ने अध्यक्ष परिषद को एक पत्र भेजकर ज्ञानवापी (Gyanvapi) क्षेत्र को हमेशा के लिए हिंदुओं को सौंपने का सुझाव दिया था।
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